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ए॒ते द्यु॒म्नेभि॒र्विश्व॒माति॑रन्त॒ मन्त्रं॒ ये वारं॒ नर्या॒ अत॑क्षन्। प्र ये विश॑स्ति॒रन्त॒ श्रोष॑माणा॒ आ ये मे॑ अ॒स्य दीध॑यन्नृ॒तस्य॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ete dyumnebhir viśvam ātiranta mantraṁ ye vāraṁ naryā atakṣan | pra ye viśas tiranta śroṣamāṇā ā ye me asya dīdhayann ṛtasya ||

पद पाठ

ए॒ते। द्यु॒म्नेभिः। विश्व॑म्। आ। अ॒ति॒र॒न्त॒। मन्त्र॑म्। ये। वा॒। अर॑म्। नर्याः॑। अत॑क्षन्। प्र। ये। विशः॑। ति॒रन्त॑। श्रोष॑माणाः। आ। ये। मे॒। अ॒स्य। दीध॑यन्। ऋ॒तस्य॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:7» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:10» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन श्रेष्ठ विद्वान् होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो (ये) जो (एते) ये (नर्याः) मनुष्यों में श्रेष्ठ (द्युम्नेभिः) धन वा कीर्त्ति से (विश्वम्) समस्त (मन्त्रम्) विचार को (आ, अतिरन्त) अच्छे प्रकार पार होते (वा, अरम्) अथवा पूर्ण कार्य्य को (अतक्षन्) तीक्ष्णता से करते (ये) जो (श्रोषमाणाः) सुनते हुए (विशः) प्रजाजनों को (प्र, तिरन्त) अच्छे तरते और (ये) जो (मे) मेरे (अस्य) इस (ऋतस्य) सत्य विज्ञान को (आ, दीधयन्) अच्छे प्रकार प्रकाशित करते हैं, वे अभीष्ट को प्राप्त होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सुन्दर विचार के साथ स्वीकार करने योग्य पदार्थों को प्राप्त होते और नित्य विद्वानों के वचनों के श्रोता होकर सत्य झूठ का विवेक कर असत्य छोड़ सत्य का ग्रहण कर यशस्वी धनाढ्य होते हैं, वही इस जगत् में सत्कार के योग्य होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के वरा विद्वांसो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! य एते नर्या द्युम्नेभिर्विश्वं मन्त्रमातिरन्त वारमतक्षन् ये श्रोषमाणा विशः प्र तिरन्त ये मेऽस्यर्त्तस्याऽऽदीधयँस्तेऽभीष्टं प्राप्नुवन्ति ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एते) (द्युम्नेभिः) धनैर्यशोभिर्वा (विश्वम्) समग्रम् (आ अतिरन्त) तरन्ति (मन्त्रम्) विचारम् (ये) (वा) (अरम्) अलम् (नर्याः) नृषु साधवः (अतक्षन्) कुर्वन्ति (प्र) (ये) (विशः) प्रजाः (तिरन्त) प्रतरन्ति (श्रोषमाणाः) शृण्वन्तः (आ) (ये) (मे) मम (अस्य) (दीधयन्) प्रदीपयन्ति (ऋतस्य) सत्यस्य विज्ञानस्य ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सुविचारेण स्वीकर्त्तव्यान् पदार्थान् प्राप्नुवन्ति नित्यं विद्वद्वचसां श्रोतारो भूत्वा सत्याऽनृते विविच्य सत्यं धृत्वाऽऽसत्यं विहाय यशस्विनो धनाढ्या जायन्ते त एवाऽत्र सत्कर्तव्या भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सद्विचारांसह स्वीकारण्यायोग्य पदार्थ प्राप्त करतात व सदैव विद्वानांचे वचन ऐकून सत्य-असत्याचा विवेक करतात, असत्य सोडून सत्याचे ग्रहण करून यशस्वी व धनवान होतात तीच या जगात सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ६ ॥